Pakistan Tradition : पाकिस्तान में दो लोगों को सरेआम मार दी गोलियां, क्या है यह खूनी परंपरा

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स्याहकारी और कारोकारी पाकिस्तान की उन अमानवीय परंपराओं (Pakistan Tradition) में से हैं, जिनमें इज्जत के नाम पर महिलाओं और पुरुषों की हत्या कर दी जाती है। uplive24.com पर जानिए इस ऑनर किलिंग की कड़वी सच्चाई और इसके पीछे की सोच।

पाकिस्तान (Pakistan) के ब्लूचिस्तान का एक वीडियो वायरल है। इसमें तीन गाड़ियों से कुछ लोग उतरते हैं। हाथों में हथियार और साथ में दो बंदी। कुछ देर बाद उन दोनों बंदियों - महिला और पुरुष को गोली मार दी जाती है। 

बताया जा रहा है कि इन दोनों को स्याहकारी या कारोकारी परंपरा के तहत मारा गया। यह घटना बकरीद से पहले की है और इसका वीडियो अब वायरल हुआ है। इसके बाद पुलिस ने केस दर्ज कर लिया है। 

पहले जानते हैं कि क्या है स्याहकारी या कारोकारी

पाकिस्तान के सिंध और बलूचिस्तान जैसे इलाकों में एक खतरनाक परंपरा (Pakistan Tradition) कई वर्षों से चली आ रही है, जिसका नाम है स्याहकारी या कारोकारी। यह शब्द सुनने में तो अजनबी लग सकते हैं, लेकिन इसके पीछे की हकीकत बेहद दर्दनाक और डरावनी है। 

स्याहकारी या कारोकारी उस स्थिति को कहते हैं जब किसी महिला और पुरुष पर गैरकानूनी या अवैध संबंध का आरोप लगाया जाता है। समाज में इसे 'इज्जत का मामला' कहा जाता है और इसी इज्जत के नाम पर उन्हें मार देना एक सामाजिक स्वीकृति बन चुकी है।

'कारी' शब्द आमतौर पर उस महिला के लिए इस्तेमाल होता है जिस पर बेवफाई या गलत संबंधों का आरोप होता है, और 'कारो' उस पुरुष के लिए जो इस संबंध का दूसरा पक्ष माना जाता है। इन दोनों को सामाजिक नियमों के अनुसार दोषी मान लिया जाता है - बिना किसी अदालत, बिना किसी सबूत या सुनवाई के। और फिर कई बार अपने ही परिवार के लोग, पंचायत या कबीले के लोग इन पर जानलेवा हमला कर देते हैं। खास बात यह है कि इस पूरी प्रक्रिया में महिलाएं सबसे ज्यादा निशाने पर होती हैं।

स्याहकारी सिर्फ एक परंपरा (Pakistan Tradition) नहीं, एक सोच है - वह सोच जो महिला की स्वतंत्रता को गुनाह मानती है। लड़की अगर किसी से बात कर ले, किसी से मुस्कुरा दे, या कभी अपने फैसले खुद लेने की कोशिश करे, तो उस पर कारी होने का ठप्पा लगा दिया जाता है। कई बार तो यह आरोप सिर्फ अफवाहों या दुश्मनी के चलते लगाए जाते हैं। और इसके बाद जो होता है, वह कोई न्याय नहीं, सीधा कत्ल होता है।

अक्सर इन हत्याओं को 'इज्जत बचाने' के नाम पर सही ठहराया जाता है। परिवार वाले पुलिस या अदालत का दरवाजा खटखटाने की बजाय खुद ही 'फैसला' सुना देते हैं और उसे अंजाम भी दे डालते हैं। दुख की बात ये है कि कई बार समाज भी इसे गलत नहीं मानता, बल्कि उसे सम्मान से देखता है कि उसने 'अपनी इज्जत बचा ली'। लेकिन सच तो यह है कि इज्जत कभी किसी की हत्या से नहीं मिलती।

पाकिस्तान में मानवाधिकार कार्यकर्ता और महिला संगठन लगातार इस प्रथा (Pakistan Tradition) को खत्म करने की मांग कर रहे हैं। कई रिपोर्टों में यह बात सामने आई है कि हर साल दर्जनों महिलाएं और पुरुष स्याहकारी या कारोकारी के नाम पर मारे जाते हैं। सरकारों ने कई बार कानून बनाए, लेकिन जब तक समाज की सोच नहीं बदलेगी, तब तक कानून भी बेअसर ही रहेंगे।


जांच में अब तक क्या मिला, क्या कहा बलूचिस्तान के सीएम ने... क्लिक करें - 

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